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कृषि वैज्ञानिक कपास की इन किस्मों की बुवाई करने की सलाह दे रहे हैं

कृषि वैज्ञानिक कपास की इन किस्मों की बुवाई करने की सलाह दे रहे हैं

वर्तमान में गेहूं की फसल की कटाई हो चुकी है। साथ ही, कपास की बुवाई (cotton sowing) का वक्त प्रारंभ हो गया है। अब ऐसी स्थिति में जो किसान गेहूं के पश्चात कपास की खेती (cotton cultivation) करना चाहते हैं, उनके लिए कपास की बुवाई की कई बेहतरीन किस्में हैं, जो बेहतर उत्पादन प्रदान कर सकती हैं। 

कृषि वैज्ञानिकों ने अमेरिकन कपास या नरमा की खेती करने वाले कृषकों के लिए सलाह भी जारी कर दी है। इसके लिए कृषि वैज्ञानिकों की तरफ से कपास की अनुशंसित किस्में लगाने की सलाह दी जा रही है। 

इसके साथ इसकी बुवाई में ध्यान रखने वाली आवश्यक बातों के विषय में भी बताया जा रहा है। विभाग की तरफ से राजस्थान के कृषकों को 20 मई तक कपास की बिजाई करने के लिए कहा जा रहा है, जिससे कि कपास में गुलाबी सुंडी का प्रकोप न हो सके। इसके साथ ही कपास की उन्नत किस्मों के विषय में भी बताया जा रहा है।

नरमा (कपास) की आर.एस. 2818 किस्म 

RS of Narma (Cotton) 2818 नरमा आर.एस किस्म से 31 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक उपज हांसिल की जा सकती है। इसके रेशे की लंबाई 27.36 मिलीमीटर, मजबूती 29.38 ग्राम टेक्स आंकी गई है। 

टिंडे का औसत भार 3.2 ग्राम होता है। बिनौलों में 17.85 प्रतिशत तेल की मात्रा पाई जाती है। इसकी ओटाई 34.6 प्रतिशत आंकी गई है।

नरमा (कपास) की आर.एस. 2827 किस्म 

RS of Narma (Cotton) 2827 नरमा (कपास) की आर.एस- 2827 किस्म से औसत 30.5 क्विंटल प्रति हैक्टेयर पैदावार प्राप्त की जा सकती है। 

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इसके रेशे की लंबाई 27.22 मिलीमीटर व मजबूती 28.86 ग्राम व टेक्स आंकी गई है। इसके टिंडे का औसत वजन 3.3 ग्राम होता है। इसके बिनौले में तेल की मात्रा 17.2 फीसद होती है।

नरमा (कपास) की आर.एस. 2013 किस्म

RS of Narma (Cotton) 2013 नरमा (कपास) की आरएस 2013 किस्म की ऊंचाई 125 से 130 सेमी होती है। इसकी पत्तियां मध्यम आकार की व हल्के हरे रंग की होती हैं। 

इसके फूलों की पखुड़ियों का रंग पीला होता है। यह किस्म 165 से 170 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म में गुलाबी सुड़ी द्वारा हानि अन्य किस्मों की अपेक्षा कम होती है। 

यह किस्म पत्ती मरोड़ विषाणु बीमारी के प्रति भी अवरोधी है। इस किस्म से प्रति हैक्टेयर 23 से 24 क्विंटल तक पैदावार प्राप्त की जा सकती है।

नरमा (कपास) की आरएसटी 9 किस्म 

RST 9 variety of Narma (cotton) नरमा (कपास) की आरएसटी 9 किस्म के पौधे की ऊंचाई 130 से 140 सेमी तक होती है। इसकी पत्तियां हल्के रंग की होती हैं और फूल का रंग हल्का पीला होता है। 

इसमें चार से छह एकांक्षी शाखाएं होती हैं। इसके टिंडे का आकार मध्यम है, जिसका औसत वजन 3.5 ग्राम होता है। यह किस्म 160 से 200 दिन में पककर तैयार हो जाती है। 

तेला (जेसिड) रोग से इस किस्म में कम हानि होती है। इस किस्म की ओटाई का प्रतिशत भी अन्य अनुमोदित किस्मों से अधिक है।

नरमा (कपास) की आर.एस. 810 किस्म

RS of Narma (Cotton) 810 नरमा (कपास) की आर.एस. 810 किस्म के पौधे की ऊंचाई 125 से 130 सेमी होती है। इसके फूलों का रंग पीला होता है। इसके टिंडे का आकार छोटा करीब 2.50 से 3.50 ग्राम होता है। 

इसके रेशे की लंबाई 24 से 25 मिलीमीटर व ओटाई क्षमता 33 से 34 फीसद होती है। यह किस्म 165 से 175 दिन में पककर तैयार हो जाती है। 

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यह किस्म पत्ती मोड़क रोग की प्रतिरोधी है। इस किस्म से लगभग 23 से 24 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक उपज हांसिल की जा सकती है।

नरमा (कपास) की आर.एस. 875 किस्म

RS of Narma (Cotton) 875 नरमा (कपास) की आर.एस. 875 किस्म के पौधों की ऊंचाई 100 से 110 सेमी होती है। इसकी पत्तियां चौड़ी व गहरे हरे रंग की होती हैं। इसमें शून्य यानी जीरो से एक एकांक्षी शाखाएं पाई जाती हैं। 

इसके टिंडे का आकार मध्यम होता है और औसत वजन 3.5 ग्राम होता है। इसके रेशे की लंबाई 27 मिलीमीटर होती है। इसमें तेल की मात्रा 23 प्रतिशत पाई जाती है, जो कि अन्य अनुमोदित किस्मों से ज्यादा है। 

इस किस्म की फसल 150 से 160 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इससे उसी खेत में सामान्य समय पर गेहूं की बुवाई भी की जा सकती है।

बीकानेरी नरमा

बीकानेरी नरमा  (Bikaneri Narma) किस्म के पौधे की ऊंचाई लगभग 135 से 165 सेमी होती है। इसकी पत्तियां छोटी, हल्के हरे रंग की होती है और फूल छोटे और हल्के पीले रंग के होते हैं। 

इसमें चार से छह एकांक्षी शाखाएं पाई जाती हैं। इसके टिंडे का आकार मध्यम और औसत वजन 2 ग्राम होता है। इसकी फसल 160 से 200 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म में तेला (जेसिड) से अपेक्षाकृत कम हानि होती है।

मरू विकास (राज, एच.एच. 6) 

Desert Development (Kings, HH 6) नरमा (कपास) की मरू विकास (राज, एच.एच. 6) के पौधों की ऊंचाई 100 से 110 सेमी. और पत्तियां चौड़े आकार की होती हैं। इसका रंग हरे रंग का होता है। 

इसमें शून्य यानी जीरो से एक एकांक्षी शाखाएं पाई जाती हैं। इसके टिंडे का आकार मध्यम और औसत वजन 3.5 ग्राम होता है। इसके रेशे की लंबाई 27 मिलीमीटर होती है। 

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इसमे तेल की मात्रा 23 प्रतिशत पाई जाती है। इस किस्म की फसल 150 से 160 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इससे उसी खेत में सामान्य समय पर गेहूं की बुवाई कर सकते हैं।

नरमा कपास की उन्नत किस्मों की बुवाई का तरीका 

नरमा कपास की उन्नत किस्मों की बुवाई के लिए 4 किलोग्राम प्रति बीघा की दर से बीज की जरूरत पड़ती है। बुवाई के दौरान पंक्ति से पंक्ति का फासला 67.50 सेंटीमीटर तथा पौधे से पौधे का फासला लगभग 30 सेंटीमीटर रखना चाहिए।

नरमा की बुवाई का समय 15 अप्रैल से 15 मई तक माना जाता है। लेकिन किसान मई के अंत तक इसकी बिजाई कर सकते हैं।

मौसम की बेरुखी ने भारत के इन किसानों की छीनी मुस्कान

मौसम की बेरुखी ने भारत के इन किसानों की छीनी मुस्कान

बरसात की वजह से ओडिशा में फसलों को काफी क्षति का सामना करना पड़ा है। इस कारण से बहुत सारी सब्जियों की कीमत काफी कम हो गई हैं। खराब मौसम के चलते किसानों की चिंता ज्यों की त्यों बनी हुई है। बीते कई दिनों में भारत में मौसम ने अपना अलग-अलग मिजाज दिखाया है। बहुत सारे क्षेत्र कड़ाके की सर्दी की मार सहन कर रहे हैं तो बहुत सारे क्षेत्रों में बारिश के चलते फसल बर्बाद हो रही है।

ओडिशा के सुंदरगढ़ में बहुत दिनों से मौसम खराब था। नतीजतन बागवानी फसलों को भारी नुकसान उठाना पड़ा है। इसकी वजह से किसानों की परेशानी भी बेहद बढ़ी है। खराब मौसम की वजह से टमाटर, पत्ता गोभी व फूल गोभी सहित बहुत सारी अन्य फसलें भी प्रभावित हुई हैं। इसकी मुख्य वजह किसान समय से पहले ही फसल की कटाई करने पर विवश हैं। इसके साथ - साथ किसान इन फसलों को कम भाव पर भी बेच रहे हैं।

इस वजह से हुई फसलों को हानि 

कई मीडिया एजेंसियों के मुताबिक, खराब मौसम और प्रचंड बारिश के चलते फसलों को बेहद क्षति पहुँची है। इस वजह से बहुत सारे स्थानों पर पूर्णतय कटने को तैयार खड़ी फसल भी बर्बाद हो गई है। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो सबसे ज्यादा हानि टमाटर की फसल को पहुंची है। बरसात के चलते टमाटर की फसल खराब होने लगी है। वहीँ, गोभी की फसल भी काफी हद तक खराब हो चुकी है।

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विवश होकर किसान समय से पहले कटाई करने पर मजबूर 

किसानों का जीवन अनेकों समस्याओं और मुश्किलों से भरा हुआ होता है। अब ऐसे में मौसम की बेरुखी से परेशान किसानों की बची हुई फसल भी काफी कम  कीमतों पर बिक रही है। किसानों को यह डर भी काफी सता रहा है, कि कहीं बची हुई शेष फसल भी बर्बाद ना हो जाए। रिपोर्ट्स के मुताबिक, किसान अपनी टमाटर की फसल को 10 रुपये किलो के भाव पर बेचने को विवश हैं। साथ ही, गोभी का मूल्य भी 15 रुपये किलो पर आ गया है। 

बहुत सारे किसानों की तो गोभी की फसल कम कीमत पर भी नहीं बिक पा रही है। इसके अतिरिक्त भिंडी, लौकी, करेला सहित अन्य फसलों में भी मौसम का असर देखने को मिला है। जिसकी वजह से किसान भाई निश्चित समय से पूर्व ही फसलों की कटाई कर रहे हैं। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो फसलों के दामों में काफी ज्यादा कमी आई है। टमाटर की कीमतें 10 रुपये से लेकर 20 रुपये के मध्य हैं। वहीँ, फूलगोभी की कीमत भी लगभग 50 रुपये से गिरकर 15 रुपये से 20 रुपये के आसपास पहुंच गईं हैं।

आलू की फसल को झुलसा रोग से बचाने का रामबाण उपाय

आलू की फसल को झुलसा रोग से बचाने का रामबाण उपाय

भारत में बदले मौसम के तेवर रबी फसलों से प्रत्यक्ष तौर पर जुड़े होते हैं। आलू की फसल झुलसा रोग के मामले में काफी संवेदनशील है। बतादें, कि कोहरा, बादल और बूंदाबांदी मौसम के बदले मिजाज में आलू की फसल झुलसा रोग के प्रति संवेदनशील होती है। आलू की खेती में लगने वाली ज्यादा लागत एवं रोग से संभावित भारी नुकसान के मद्देनजर कृषक रोकथाम के उपाय करें। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि बारिश, बादल और तापमान में आई अप्रत्याशित गिरावट एवं कोहरे के कारण महज आलू की ही नहीं बल्कि अन्य फसलों जैसे कि टमाटर, लहसुन और प्याज की फसल को भी नुकसान संभव है। बढ़वार रुकने के साथ-साथ रोगों के प्रति संवेदनशीलता भी बढ़ जाती है। वर्तमान में आलू की फसल पछेती झुलसा (लेट ब्लाइट) के प्रति संवेदनशील है। इसका प्रकोप ऊपर की पत्तियों से चालू होता है। प्रारंभिक समय में किनारे की पत्तियां काली होती हैं। तीव्रता से इसका संक्रमण संपूर्ण पत्तियों और तने से होकर कंद तक पहुंच जाता है। ये अगैती झुलसा से ज्यादा खतरनाक है। समय रहते इसकी रोकथाम ना होने पर 2-3 दिन में पूरी फसल चौपट हो सकती है।

झुलसा रोग की इस तरह रोकथाम करें 

किसान मैंकोजेब के साथ कार्बेडाजिम का छिड़काव करें। प्रति लीटर पानी में दवा का अनुपात 2.5 से 3 ग्राम तक रखें। पहले रक्षात्मक छिड़काव के पश्चात आवश्यकता हो तो दो सप्ताह के पश्चात दूसरा भी छिड़काव करें।

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माहू का नियंत्रण कैसे करें 

आज के मौसम में सब्जियों के साथ-साथ सरसों में भी माहू और इससे होने वाले विषाणु जनित रोगों के संक्रमण की संभावना होती है। प्रकोप होने पर पत्तियां मुड़कर मोटी और कड़ी हो जाती हैं। पौध का विकास और बढ़वार रुक जाता है एवं पैदावार प्रभावित हो जाती है। इसके नियंत्रण के लिए मेटासिस्टाक्स 1.5 मिली लीटर प्रति लीटर पानी में मिश्रित कर छिड़काव करें। पाले से संरक्षण करने के लिए खेत में नमी बनाए रखें। आप मैंकोजेब का भी छिड़काव कर सकते हैं।

सब्जियों की अन्य फसलों पर भी मौसम का असर होगा 

अगर मौसम खराब रहा तो ऐसे में प्याज, लहसुन का विकास रुक जाता है। अधिकतर प्याज की रोपाई हो चुकी है अथवा नर्सरी में है। यदि प्याज की रोपाई करनी है, तो बेसल ड्रेसिंग में बाकी उर्वरकों के साथ प्रति एकड़ 10 किग्रा गंधक का भी इस्तेमाल करें। इफ्को का बेंटानाइट सल्फर एक शानदार उत्पाद है। नर्सरी में यदि गलन की दिक्कत है, तो मैंकोजेब, कार्बेडाजिम एवं सल्फर का छिड़काव करें। विशेषज्ञों के मुताबिक 18:18:18 (घुलनशील उर्वरक) का छिड़काव भी बेहतर बढ़वार में मददगार है। कम तापमान के चलते लहसुन के कंद छोटे हो सकते हैं। इसके लिए 13:0: 45 का छिड़काव करें। एक लीटर पानी में 10 ग्राम खाद डालें। इसमें 6 मिलीग्राम स्टीकर मिलाने से नतीजे बेहतर होंगे। सब्जियों में ऐसे मौसम में आए फल-फूल गिर जाते हैं। ये बने रहें इसके लिए सूक्ष्म पोषक तत्वों का छिड़काव करें।
जानिए धान की फसल में लगने वाले प्रमुख रोगों और उनकी रोकथाम के बारे में

जानिए धान की फसल में लगने वाले प्रमुख रोगों और उनकी रोकथाम के बारे में

भारत धान का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। खरीफ के सीजन में धान की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। इस सीजन में वायुमंडल में आर्दरता होने के कारण फसल पर रोगों का प्रकोप भी बहुत होता है। धान की फसल कई रोगों से ग्रषित होती है जिससे पैदावार में बहुत कमी आती है। मेरी खेती के इस लेख में आज हम आपको धान के प्रमुख रोगों और उनकी रोकथाम के बारे में विस्तार से बताएंगे।  

धान के प्रमुख रोग और इनका उपचार   

  1. धान का झोंका (ब्लास्ट रोग) 

  • धान का यह रोग पाइरिकुलेरिया ओराइजी नामक कवक द्वारा फैलता है। 
  • धान का यह ब्लास्ट रोग अत्यंत विनाशकारी होता है।
  • पत्तियों और उनके निचले भागों पर छोटे और नीले धब्बें बनते है, और बाद मे आकार मे बढ़कर ये धब्बें नाव की तरह हो जाते है।


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उपचार 

  • रोग के नियंत्रण के लिए बीज को बोने से पहले बेविस्टीन 2 ग्राम या कैप्टान 2.5 ग्राम दवा को प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर लें।
  • खड़ी फसल मे रोग नियंत्रण के लिए  100 ग्राम Bavistin +500 ग्राम इण्डोफिल M -45 को 200 लीटर पानी मे घोलकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करना चाहिए।
  • बीम नामक दवा की 300 मिली ग्राम मात्रा को 1000 लीटर पानी मे घोलकर छिड़काव किया जा सकता है।
  1. जीवाणुज पर्ण झुलसा रोग यानी की (Bacterial Leaf Blight)

लक्षण 

  • ये मुख्य रूप से यह पत्तियों का रोग है। यह रोग कुल दो अवस्थाओं मे होता है, पर्ण झुलसा अवस्था एवं क्रेसेक अवस्था। 
  • सर्वप्रथम पत्तियों के ऊपरी सिरे पर हरे-पीले जलधारित धब्बों के रूप मे रोग उभरता है।
  • धीरे-धीरे पूरी पत्ती पुआल के रंग मे बदल जाती है। 
  • ये धारियां शिराओं से घिरी रहती है, और पीली या नारंगी कत्थई रंग की हो जाती है।


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उपचार 

  • रोग के नियंत्रण के लिए एक ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन या 5 ग्राम एग्रीमाइसीन में बीज को बोने से पहले 12 घंटे तक डुबो लें।
  • बीजो को स्थूडोमोनास फ्लोरेसेन्स 10 ग्राम प्रति किलो ग्राम बीज की दर से उपचारित कर लगावें।
  • खड़ी फसल मे रोग दिखने पर ब्लाइटाक्स-50 की 2.5 किलोग्राम एवं स्ट्रेप्टोसाइक्लिन की 50 ग्राम दवा 80-100 लीटर पानी मे मिलाकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।    
  1. पर्ण झुलसा पर्ण झुलसा

भारत के धान विकसित क्षेत्रों मे यह एक प्रमुख रोग बनकर सामने आया है। ये रोग राइजोक्टोनिया सोलेनाई नामक फफूँदी के कारण होता है, जिसे हम थेनेटीफोरस कुकुमेरिस के नाम से भी जानते है। पानी की सतह से ठीक ऊपर पौधें के आवरण पर फफूँद अण्डाकार जैसा हरापन लिए हुए स्लेट/उजला धब्बा पैदा करती है।

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इस रोग के लक्षण मुख्यत पत्तियों एवं पर्णच्छद पर दिखाई पड़ते है। अनुकूल परिस्थितियों मे फफूँद छोटे-छोटे भूरे काले रंग के दाने पत्तियों की सतह पर पैदा करते है, जिन्हे स्कलेरोपियम कहते है। ये स्कलेरोसीया  हल्का झटका लगने पर नीचे गिर जाता है। सभी पत्तियाँ आक्रांत हो जाती है जिस कारण से पौधा झुलसा हुआ दिखाई देता है, और आवरण से बालियाँ बाहर नही निकल पाती है। बालियों के दाने भी पिचक जाते है। वातावरण मे आर्द्रता अधिक तथा उचित तापक्रम रहने पर, कवक जाल तथा मसूर के दानों के तरह स्कलेरोशियम दिखाई पड़ते है। रोग के लक्षण कल्लें बनने की अंतिम अवस्था मे प्रकट होते है। लीफ शीथ पर जल सतह के ऊपर से धब्बे बनने शुरू होते है। पौधों मे इस रोग की वजह से उपज मे 50% तक का नुकसान हो सकता है।

 उपचार 

धान के बीज को स्थूडोमोनारन फ्लोरेसेन्स की 1 ग्राम अथवा ट्राइकोडर्मा 4 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करके बुआई करें। जेकेस्टीन या बेविस्टीन 2 किलोग्राम या इण्डोफिल एम-45 की 2.5 किलोग्राम मात्रा को 200 लीटर पानी मे घोलकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें। खड़ी फसल मे रोग के लक्षण दिखाई देते ही भेलीडा- माइसिन कार्बेन्डाजिम 1 ग्राम या प्रोपीकोनालोल 1 ML का 1.5-2 मिली प्रति लीटर पानी मे घोल बनाकर 10-15 दिन के अन्तराल पर 2-3 छिड़काव करें।

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  1. धान का भूरी चित्ती रोग (Brown Spot)

धान का यह रोग देश के लगभग सभी हिस्सों मे देखा जा सकता है। यह एक बीजजनित रोग है। यह रोग हेल्मिन्थो स्पोरियम औराइजी नामक कवक द्वारा होता है।    ये रोग फसल को नर्सरी से लेकर दाने बनने तक प्रभावित करता है। इस रोग के कारण पत्तियों पर गोलाकार भूरे रंग के धब्बें बन जाते है।  इस रोग के कारण पत्तियों पर तिल के आकार के भूरे रंग के काले धब्बें बन जाते है। ये धब्बें आकार एवं माप मे बहुत छोटी बिंदी से लेकर गोल आकार के होते है। धब्बों के चारो ओर हल्की पीली आभा बनती है।                       ये रोग पौधे के सारे ऊपरी भागों को प्रभावित करता है।    

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उपचार 

रोग दिखाई देने पर मैंकोजेब के 0.25 प्रतिशत घोल के 2-3 छिड़काव 10-12 दिनों के अन्तराल पर करना चाहिए। खड़ी फसल में इण्डोफिल एम-45 की 2.5 किलोग्राम मात्रा को 200 लीटर पानी मे घोल कर प्रति एकेड की दर से छिड़काव 15 दिनों के अन्तर पर करें।  इस लेख में आपने धान के प्रमुख रोगों और इनकी रोकथाम के बारे में जाना । मेरी खेती आपको खेतीबाड़ी और ट्रैक्टर मशीनरी से जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी प्रोवाइड करवाती है। अगर आप खेतीबाड़ी से जुड़ी वीडियोस देखना चाहते हो तो हमारे यूट्यूब चैनल मेरी खेती पर जा के देख सकते है।  
मूंग की खेती में लगने वाले रोग एवं इस प्रकार से करें उनका प्रबंधन

मूंग की खेती में लगने वाले रोग एवं इस प्रकार से करें उनका प्रबंधन

इन दिनों देश में जायद मूंग की बुवाई चल रही है। कुछ दिनों में ही यह ग्रीष्मकालीन मूंग खेतों में लहलहाने लगेगी। पौधों के बढ़ने के साथ ही मूंग की खेती में कई प्रकार के रोग लगना प्रारंभ हो जाते हैं जिनके कारण फसल बुरी तरह से प्रभावित होती है। इसलिए आज हम आपको बताने जा रहे हैं  मूंग की फसल में लगने वाले रोगों के बारे में। साथ ही रोगों का प्रबंधन किस प्रकार से किया जाए ताकि फसल को नुकसान न हो, इसके बारे में भी जानकारी दी जाएगी।

पीला मोज़ेक रोग

यह मूंग की फसल में लगने वाला विषाणु जनित रोग है, जो तेजी से फैलता है। यह सबसे ज्यादा सफेद मक्खियों के कारण फैलता है। इसकी वजह से फसल कई बार पूरी तरह से नष्ट हो जाती है। जब पौधों में इसका अटैक होता है तो पत्तियों में पीले धब्बे पड़ जाते हैं। कुछ समय बाद पत्तियां पूरी तरह से पीली होकर सूख जाती हैं। जिन पेड़ों में इसका ज्यादा असर होता है उनमें फलियों और बीजों पर भी पीले धब्बे दिखाई देते हैं। ये भी पढ़े: फायदे का सौदा है मूंग की खेती, जानिए बुवाई करने का सही तरीका

इस प्रकार से पाएं इस रोग से छुटाकारा

इस रोग से निपटने के लिए बुवाई एक समय ऐसी किस्मों का चयन करें जिनमें इस रोग का प्रभाव नहीं पड़ता है। इसलिए बुवाई के लिए मूंग की टी.जे.एम.-3, के-851, पंत मूंग -2, पूसा विशाल, एच.यू.एम. -1 जैसी किस्मों को ले सकते हैं। इसके अलावा यदि प्रारम्भिक अवस्था में ही रोग लगना शुरू हो गया है तो पौधों को उखाड़कर नष्ट कर दें। साथ ही बाजार में उपलब्ध कीटनाशकों का प्रयोग भी कर सकतें हैं।

श्याम वर्ण रोग

यह एक खतरनाक रोग है जिसके कारण उत्पादन में 25 से लेकर 60 प्रतिशत तक की कमी आ सकती है। अगर आसमान में बादल छाए हुए है तो फसल में यह रोग आसानी से लग सकता है। इस रोग के कारण पेड़ की पत्तियों में गंभीर धब्बे दिखाई देते हैं। इससे पत्तियों में छेद हो जाते हैं और अंततः पत्तियां झड़ जाती हैं। पेड़ों के तनों पर गहरे और गंभीर घाव बन जाते है और अंततः नए पौधे मर जाते हैं। ये भी पढ़े: चने की फसल को नुकसान पहुँचाने वाले प्रमुख रोग और इनका प्रबंधन

इस प्रकार से करें इस रोग का प्रबंधन

पेड़ों में लक्षण दिखाई देने पर 15 दिनों के अंतराल पर जिऩेब या थीरम का छिडक़ाव करें। इसके पहले बुवाई के पहले भी बीजों को उपचारित करें, इसके उपरांत बुवाई करें। साथ ही कार्बेन्डाजिम या मेनकोजेब का छिड़काव भी इस रोग को जल्द ही खत्म कर देता है।

चूर्णी फफूंद रोग

यह वायु द्वारा परपोषी पौधों के द्वारा फैलने वाला रोग है जो गर्मी और शुष्क वातावरण में फैलता है। अपनी उग्र अवस्था में यह रोग फसल का 21% हिस्सा नष्ट कर सकता है। इस रोग के कारण मूंग के पौधों की पत्तियों ने निचले हिस्सों में गहरे रंग के धब्बे प्रकट होते हैं। इसके साथ ही छोटी-छोटी बिंदियां भी दिखाई देने लगती हैं। समय के साथ ही इन बिंदियों और धब्बों का आकार बढ़ने लगता है और यह रोग पत्तियों के साथ पौधों के तनों पर भी फैल जाता है। इससे अंततः पौधे पूरी तरह से सूख जाते हैं। ये भी पढ़े: मध्य प्रदेेश में एमएसपी (MSP) पर 8 अगस्त से इन जिलों में शुरू होगी मूंग, उड़द की खरीद

इस प्रकार से करें चूर्णी फफूंद रोग का प्रबंधन

फसल में इस रोग से निपटने के लिए  कवकनाशी जैसे कार्बेन्डाजिम या केराथेन के घोल का छिड़काव कर सकते हैं। इनका छिड़काव रोग के लक्षण दिखते ही शुरू कर दें। इसके बाद 15-20 दिन के अंतराल में इनका छिड़काव करते रहें।

सर्कोस्पोरा पर्णदाग रोग

यह एक कवक रोग है जो मूंग की फसल में बरसात के मौसम में तथा शुष्क मौसम में फैलता है। गर्म तापमान, लगातार वर्षा, और उच्च आर्द्रता के कारण यह रोग मूंग के पौधे को अपनी जद में ले लेता है। इस रोग के कारण आमतौर पर गहरे भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं जो लाल बाहरी किनारों से घिरे होते हैं। जब यह रोग फसल में ज्यादा फैल जाता है तो मूंग के पेड़ों की शाखाओं और तने पर भी धब्बे दिखाई देते हैं।

सर्कोस्पोरा पर्णदाग रोग का प्रबंधन

संक्रमित फसल अवशेषों को नष्ट करने के साथ ही खेत की सफाई से यह रोग नियंत्रित होता है। बुवाई से पहले कवकनाशी कैप्टान या थीरम से बीज को उपचारित कर लें। इसके साथ ही मेन्कोजेब 75 डब्ल्यू. पी. और कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्यू. पी. के घोल का छिड़काव करने से भी इस रोग के प्रसार में नियंत्रण पाया जा सकता है।

लीफ कर्ल

यह एक विषाणु जनित रोग है जो मक्खियों के कारण या बीजों के कारण फैलता है। इस रोग के कारण पौधे की पत्तियों में झुर्रियां आने लगती हैं। इसके साथ ही पत्तियां जरूरत से ज्यादा बड़ी होने लगती हैं। इससे पौधे का विकास रुक जाता है और पौधे में नाम मात्र की फलियां आती है। बुवाई के 4 से 5 सप्ताह के भीतर ही पौधों में ये लक्षण दिखाई देने लग जाते हैं। इस रोग से संक्रमित पौधों को खेत में दूर से ही पहचाना जा सकता है। ये भी पढ़े: इस राज्य के किसान फसल पर हुए फफूंद संक्रमण से बेहद चिंतित सरकार से मांगी आर्थिक सहायता

लीफ कर्ल रोग का प्रबंधन

इस रोग को नियंत्रित करने के लिए बुवाई से पहले बीज को इमिडाक्लोप्रिड से उपचारित करना चाहिए। इसके साथ ही बुवाई के 15 दिनों के बाद इमिडाक्लोप्रिड को पानी में घोलकर छिड़काव भी करना चाहिए। इससे लीफ कर्ल रोग को फसल पर प्रकोप कम हो सकता है।
इस राज्य में किसानों को घर बैठे अनुदानित दर पर बीज मुहैय्या कराए जाएंगे

इस राज्य में किसानों को घर बैठे अनुदानित दर पर बीज मुहैय्या कराए जाएंगे

खेती किसानी में बेहतर पैदावार जब ही प्राप्त हो सकती है, जब उर्वरक भूमि के साथ-साथ बेहतरीन गुणवत्ता के बीज भी होने चाहिए। बिहार सरकार फिलहाल उत्तम गुणवत्ता के बीजों को किसानों के घर तक पहुंचाएगी। बेहतरीन खेती के लिए अच्छी गुणवत्ता के बीजों का होना काफी आवश्यक होता है। किसान बीज प्राप्त करने के लिए बाजार एवं बीज केंद्रों के चक्कर काटते रहते हैं। उत्तम गुणवत्ता का बीज न मिलने की वजह से किसानों की फसल उतनी खास नहीं हो पाती है। किसानों के समक्ष चुनौती यह भी रहती है, कि बेहतरीन गुणवत्ता के बीजों की पहचान किस तरह की जाए। राज्य सरकार के स्तर से भी किस तरह अच्छे बीज प्राप्त हो सकें। किसान इसको लेकर भी मांग करते रहते हैं। फिलहाल, बिहार सरकार ने इसी दिशा में पहल की जा रही है। किसानों की काफी परेशानियां भी समाप्त कर दी है।

बिहार सरकार की तरफ से बीजों की होम डिलीवरी की सुविधा दी गई है

बिहार सरकार खरीफ सीजन में उगाई जाने वाली विभिन्न फसलों के बीजों को अनुदान देकर मुहैय्या करा रही है। बीजों को किसानों के घर तक मुहैय्या कराने के लिए होम डिलीवरी की सुविधा भी दी गई है। राज्य सरकार के अधिकारियों ने बताया है, कि जो किसान घर पर बीज प्राप्त करना चाहते हैं। उनको एक अलग विकल्प भरना होगा। होम डिलीवरी हेतु उनसे अतिरिक्त धन भी लिया जाएगा। यह भी पढ़ें:
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बिहार सरकार द्वारा किया अपील की गई है

बिहार सरकार, कृषि विभाग द्वारा सोशल मीडिया पर यह जानकारी प्रदान की है। बिहार सरकार की तरफ से बताया गया है, कि किसान भाइयों एवं बहनों, कृपया गौर करें! खरीफ मौसम, 2023 में विभिन्न फसलों के बीज की सब्सिड़ी दर पर उपलब्धता से जुड़ी सूचना। कृषि विभाग द्वारा बिहार राज्य बीज निगम के जरिए से खरीफ मौसम, 2023 की विभिन्न योजनाओं में खरीब फसलों के बीज अनुदानित दर पर वितरण करने की योेजना तैयार कर ली है।

किसान ऑनलाइन आवेदन यहां कर सकते हैं

इच्छुक किसान अनुदानित दर पर विभिन्न खरीफ फसलों के बीज प्राप्त करने के लिए DBT Portal (https://dbtagriculture.bihar.gov.in) / BRBN Portal (brbn.bihar.gov.in) के बीज अनुदान / आवेदन लिंक पर दिनांक 15 अप्रैल, 2023 से 30 मई, 2023 तक आवेदन किया जा सकता है। किसान सुविधानुसार   साइबर कैफ / वसुधा केंद्र / कॉमन सर्विस सेंटर अथवा स्वयं के Android Mobile के उपयोग से आवेदन किया जा सकता है।

बीज की डिलीवरी इस प्रकार से की जाएगी

किसानों का आवेदन संबंधित एग्रीकोऑर्डिनेटर को भेजा जाएगा। एग्री कोऑर्डिनेटर जिस स्थान पर बीज आवंटित करेगा, उस जगह की जानकारी किसान को दी जाएगी। किसान बीज विक्रेता को बीज वितरण के दौरान आधार कार्ड आधारित फिंगर प्रिंट अथवा आईरिस पहचान द्वारा आधार प्रमाणीकरण करवाकर एवं पंजीकृत मोबाइल नंबर साझा करना होगा। इसके उपरांत पंजीकृत नंबर पर ओटीपी आ जाएगा। उसको दर्ज करने के उपरांत अनुदान की धनराशि भी घट जाएगी एवं शेष धनराशि का भुगतान कर दें।
किसान ने फसल का संरक्षण करने के लिए तैयार किया अनोखा स्ट्रक्चर

किसान ने फसल का संरक्षण करने के लिए तैयार किया अनोखा स्ट्रक्चर

मध्य प्रदेश के एक किसान ने एक स्ट्रक्चर तैयार किया है, जिसके माध्यम वह स्वयं की फसल को आंधी-तूफान से संरक्षित कर सकता है। सिर्फ इतना ही नहीं इस स्ट्रक्चर पर ओले एवं पाले का भी कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। क्षेत्र के बाकी कृषक भी इस स्ट्रक्चर को खूब पसंद कर रहे हैं। एक कहावत है, कि आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है। ये कहावत मध्य प्रदेश के सागर के युवा किसान आकाश चौरसिया पर पूर्णतय फिट बैठती है। उन्होंने अपनी फसल को मौसम की मार से संरक्षण के लिए एक अद्भुत फार्मूला इजात कर डाला है। समीपवर्ती क्षेत्र के किसान भी उनकी इस तरकीब को खूब पसंद किया जा रहा है। साथ ही, उनसे इस बारे में प्रशिक्षण लेने भी पहुंच रहे हैं। इस युवा किसान के द्वारा खोजे गए फार्मूले की वजह से किसी भी फसल को तेज आंधी, गर्मी और सर्दी से संरक्षित किया जा सकता है। दरअसल, आकाश चौरसिया जैविक खेती करते हैं। क्षेत्र में उनको किसान हित में अपने नवाचारों के लिए जाना जाता है। वह खेती को और अच्छा बनाने के लिए कुछ न कुछ नया करते ही रहते हैं।

फसलों का संरक्षण करने हेतु अनोखा स्ट्रक्चर

आकाश चौरसिया ने अपनी फसलों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए उन्होंने अपने खेत में एक स्ट्रक्चर तैयार किया है, जिसमें उन्होंने एक निर्धारित फासले और ऊंचाई पर अपने खेत पर बांस एवं घास का ढांचा तैयार किया है। सर्दी के मौसम में कोहरे की अधिकता बढ़ने से फसलों पर पाला लगने की आशंका भी काफी बढ़ जाती है। परंतु, अगर आप इस स्ट्रक्चर को अपने खेत में बनाते हैं, तो आपकी फसल हवा में लगभग 12 फीट ऊपर अटक जाती है। ऐसी स्थिति में यदि आंधी आती है, तो यह स्ट्रक्चर उसे हानि नहीं पहुंचाता है। इस स्ट्रक्चर पर ओलावृष्टि का भी कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। क्योंकि, ओले घास में अटक जातें हैं। जो कि बाद में पिघलकर पानी के तौर पर फसल के लिए फायदेमंद होते हैं।

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स्ट्रक्चर तैयार करने में कितना खर्चा आया

आकाश चौरसिया का कहना है, कि इस स्ट्रक्चर को तैयार करने में न्यूनतम 50 हजार रुपये खर्च होते हैं। परंतु, एक बार तैयार होने के पश्चात यह स्ट्रक्चर 6 वर्ष तक चल सकता है। उसके बाद फिर मिट्टी में मिल जाता है। स्ट्रक्चर बनाने के स्थान पर, वहां दो प्रकार की फसलें उत्पादित की जा सकती हैं। एक, जमीन पर फसल की पैदावार की जा सकती है और दूसरा, इस स्ट्रक्चर पर विंटर की फसलें चढ़ा के पैदावार की जा सकती है। इस स्ट्रक्चर को अपने खेत में तैयार करने के उपरांत किसान एक एकड़ भूमि से डेढ़ लाख रुपये तक की आमदनी सुगमता से कर सकते हैं।

नि:शुल्क ट्रेनिंग देते हैं आकाश चौरसिया

आकाश चौरसिया इस स्ट्रक्चर को तैयार करने का नि:शुल्क प्रशिक्षण भी देते हैं, जिससे कि अन्य किसान भी इसका लाभ उठा सकें। वह बताते हैं, कि दूर-दूर से किसान उन तक इसको बनाने का प्रशिक्षण लेने आते हैं। आकाश चौरसिया सागर के संजय नगर के निवासी हैं, जहां उन्होंने एक ढाई एकड़ भूमि में इस स्ट्रक्चर को तैयार कर रखा है। उनके पास कपूरिया गांव में भी फार्म हाउस है, जहां वे बाकी कृषकों को भी इस स्ट्रक्चर का प्रशिक्षण देते हैं।